मंगलवार, 3 मार्च 2015

प्‍यार को कितना कोसें

प्‍यार को कितना कोसें
कि अब उसे हिचकियां भी नहीं आतीं
इसका दर्द संभालने को शायद ये
उमर कम पड़ जाएगी
लेकिन मुझे कायर मत कहना
कि अगली उमर तुम्‍हारे साथ होने का
ख्‍वाब लेकर जा रही हूं।

डोर टूट ना पाएगी

चलो वादे से भी हम एक वादा ले कि
तेरे टूटने से भी भरोसा की डोर टूट ना पाएगी।

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इन आंखों को भला कौन समझाए
जो आज भी बेसबर होकर देखती है
उसका रास्‍ता, जबकि इन्‍हीं
पथराई आंखों से देखे थे
उसके इनकार के वो लफ्ज़
जो शायद कांपते हांथों की जुबां
मालूम होती थी।

नफरत की इंतहां

नफरत की इंतहां हो जाए
तो मोहब्‍बत में बदल जाती है
ये भी क्‍या कम खूबसूरत ख्‍वाब है कि आपका
दुश्‍मन आपकी मोहब्‍बत में कत्‍ल होने
को पलकें बिछाए बैठा है

मंगलवार, 24 मई 2011

दीवारें ही दीवारें

गूगल खोज से साभार
सदियों सा फासला कुछ पलों में यूं मिटा
न तुम मुझसे जुदा थे और न मैं तुमसे।
कई बार दरकी थी विश्वास की दीवारें
जिसे विश्वास से ही संभाला
कभी तुमने तो कभी मैंने।
मुफलिसी के वो दिन भी क्या खूब थे
जब प्यार की रोटियों से पेट भर लिया करते थे
कभी तुम तो कभी मैं।
अब न तो वो मुफलिसी का बहाना है
न वह विश्वास ही
हैं केवल दीवारें ही दीवारें
जिसे न तुम पार कर सकते हो न मैं।

शुक्रवार, 20 मई 2011

गुनगुनी सी धूप

सर्दी पहली धूप
गुदगुदाए, बिसराए
दूर देश कहीं ले जाए।
बर्फ की चादर फैली
लोगों की हंसी ठिठोली
चाय का गर्म प्याला
ले जाए दूर कहीं, दूर कहीं।
गर्म कपड़ों की राहत
अंगीठी की गर्माहट
ठिठुरते लोगों का जमघट
ले जाए दूर कहीं, दूर कहीं।
मुंह से निकलता धुंआ,
सर्दी से ठिठुरते लोगों का कारवां
गुनगुनी धूप पाने को बेकल मन,
ले जाए दूर कहीं-दूर कहीं

हमें पाना है

नन्हें कदम बढ़ाना है
जीवन में हमें कुछ पाना है,
भविष्य हैं देश का कहते हैं सभी
उम्मीदों की उस लौ को जलाना है
आगे बढ़ते जाना है।
बस्ता भारी कंधों पर जिम्मेदारी
आंखों में सपने
मंजिल है कदमों पर अपने
सही रास्ते पर चलते जाना है।
मां का लाडला,
पिता का प्यारा
सारे जग पर राज हमारा
ऐसी अलख जगाएंगे
धरती पर सितारे लाएंगे
हम आगे बढ़ते जाएंगे।

वृक्ष


जीवन का आधार दिया है
सुयोग्य तुम्हें विकास दिया है
हरियाली ही जीवन है यह मंत्रोच्चार दिया है।
कांटों का दुःख सहकर फूल तुम पर बरसाए हैं
समान दृष्टि डाली सब पर
और समानता का नया आयाम दिया है।
पर तुमने हमसे सब छीना है,
चोट पर चोट करते रहे सदियों से तुम
क्रूरता की सीमा भी लांघी तुमने
दर्द की विभीषिका को मौन रहकर
स्वीकार हमने किया है।
अब वक्त हमारा आया है
जीवन का अधिकार हम भी छीनेंगे,
हद की सीमाएं लांधी तुमने
तो हम भी हर सीमाएं तोड़ेंगे।