मंगलवार, 3 मार्च 2015

प्‍यार को कितना कोसें

प्‍यार को कितना कोसें
कि अब उसे हिचकियां भी नहीं आतीं
इसका दर्द संभालने को शायद ये
उमर कम पड़ जाएगी
लेकिन मुझे कायर मत कहना
कि अगली उमर तुम्‍हारे साथ होने का
ख्‍वाब लेकर जा रही हूं।

डोर टूट ना पाएगी

चलो वादे से भी हम एक वादा ले कि
तेरे टूटने से भी भरोसा की डोर टूट ना पाएगी।

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इन आंखों को भला कौन समझाए
जो आज भी बेसबर होकर देखती है
उसका रास्‍ता, जबकि इन्‍हीं
पथराई आंखों से देखे थे
उसके इनकार के वो लफ्ज़
जो शायद कांपते हांथों की जुबां
मालूम होती थी।

नफरत की इंतहां

नफरत की इंतहां हो जाए
तो मोहब्‍बत में बदल जाती है
ये भी क्‍या कम खूबसूरत ख्‍वाब है कि आपका
दुश्‍मन आपकी मोहब्‍बत में कत्‍ल होने
को पलकें बिछाए बैठा है