चलो वादे से भी हम एक वादा ले कि
तेरे टूटने से भी भरोसा की डोर टूट ना पाएगी।
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इन आंखों को भला कौन समझाए
जो आज भी बेसबर होकर देखती है
उसका रास्ता, जबकि इन्हीं
पथराई आंखों से देखे थे
उसके इनकार के वो लफ्ज़
जो शायद कांपते हांथों की जुबां
मालूम होती थी।
तेरे टूटने से भी भरोसा की डोर टूट ना पाएगी।
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इन आंखों को भला कौन समझाए
जो आज भी बेसबर होकर देखती है
उसका रास्ता, जबकि इन्हीं
पथराई आंखों से देखे थे
उसके इनकार के वो लफ्ज़
जो शायद कांपते हांथों की जुबां
मालूम होती थी।
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