गूगल खोज से साभार |
न तुम मुझसे जुदा थे और न मैं तुमसे।
कई बार दरकी थी विश्वास की दीवारें
जिसे विश्वास से ही संभाला
कभी तुमने तो कभी मैंने।
मुफलिसी के वो दिन भी क्या खूब थे
जब प्यार की रोटियों से पेट भर लिया करते थे
कभी तुम तो कभी मैं।
अब न तो वो मुफलिसी का बहाना है
न वह विश्वास ही
हैं केवल दीवारें ही दीवारें
जिसे न तुम पार कर सकते हो न मैं।
झूठे अहम् की लाजवाब प्रस्तुति - गागर में सागर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अति सुंदर - बधाई और आशीष