बचपन की तुम वो मिठास,
जिसे चखकर परितृप्त है मन आज,
साथ तुम्हारे चलने को
आतुर है, पवन की रफ्तार।
जिसे चखकर परितृप्त है मन आज,
साथ तुम्हारे चलने को
आतुर है, पवन की रफ्तार।
पग तुम्हारे चलते रहें, ऊंची चोटियों के भी पार,
साथ साथ गूंजती रहे खुशियों की मल्हार
नभी से भी ऊपर रहें,
सोपान विकास की और छू जाएं कदम मंजिल को।
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