सोमवार, 14 मार्च 2011

बचपन तुम्हारे साथ

बचपन की तुम वो मिठास,
जिसे चखकर परितृप्त है मन आज,
साथ तुम्हारे चलने को
आतुर है, पवन की रफ्तार।

पग तुम्हारे चलते रहें, ऊंची चोटियों के भी पार,
साथ साथ गूंजती रहे खुशियों की मल्हार
नभी से भी ऊपर रहें,
सोपान विकास की और छू जाएं कदम मंजिल को।

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