सोमवार, 14 मार्च 2011

समिधा

पुलकित हो उठा है, मन इसके आगमन से
किलकारियां गूंज उठी हैं, हर दिशाओं में।

पदार्पण हुआ है, हृदय बगिया में कली का
व्याकुल है मन, नन्हे स्पर्श को ममता का।

भावभंगिमा बदल गई है मुखमंडल की
अधरों पर मुस्कान प्रस्फुटित हुई सबों की।

बदरंग थी जीवन की तस्वीर कल तक
भर दिया रंग जिसमें तुमने आकर।

सदा रहे तुम्हारा जीवन बुलंदियों पर
रोड़े न अटकाए कोई राहों पर।

बिखेरो खुशियां रोशनी बनकर
सुगंधित रहो सदा समिधा बनकर।

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