सोमवार, 14 मार्च 2011

दुःख की आत्मकथा

मन की पीड़ा प्रकट करना,
हे! मानव ये ठीक नहीं,
अपने दुःखों की खुली किताब रखना,
हे! मानव ये ठीक नहीं।

इसकी कहानी बड़ी पुरानी
जिसकी परिभाषा न दे पाये ज्ञानी,
कोई कहता उमड़ता बादल
कोई कहता लहरें तूफानी।

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